Monday, January 7, 2013

कुऐं का मेंडक

दिल दहला -दहला  रहता है,
आवाज गूंजती रहती है कुऐं की गहराई में,
कुऐं का मेंडक अब कुऐं में  ही रहता है,
छुप्ता-फ़िरता रहता है वो पत्थर के काले कोनों में,
नींद वहीँ उसे आती है, जहाँ हर दिन हर एक दिन जैसा,
और रात चांदनी लाती है,
अब क्या कहना, क्या सुन्ना है,
बातों में जिंदगी बीती आधी है,
झींगुर की आवाज़ भी अब कही दूर देस से आती  है,
इस गहरे , काले, अँधेरे में एक अपना सा अपनापन है,
गीलापन है, भोलापन है, अँधेरा मन है,
शायद इसी लिए कुऐं का मेंडक अब कुऐं में  ही रहता है,
इसी को घर कहता है।



The Song Of The Sufi Masroof




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